मन कि दशा बयां करू कैसे ,
कि कोमल है मन इतना ,
कुछ भी सोचू , कुछ भी बोलु ,
बिखर ही जाता है-
गुलाब कि पन्खुरियो कि तरह,
याद आपकी संजोए बैठा येह मन,
किसी और को अनदर आने कि इजाजत ही नही,
मै और आप ,आप और मै ,
सिमट गई है दुनिया इसी मे ,
कही और जाने कि जरुरत ही नही !
कि कोमल है मन इतना ,
कुछ भी सोचू , कुछ भी बोलु ,
बिखर ही जाता है-
गुलाब कि पन्खुरियो कि तरह,
याद आपकी संजोए बैठा येह मन,
किसी और को अनदर आने कि इजाजत ही नही,
मै और आप ,आप और मै ,
सिमट गई है दुनिया इसी मे ,
कही और जाने कि जरुरत ही नही !
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